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Allahabad High Court: 24 साल की कानूनी लड़ाई को मिला मुकाम, मुकदमा लड़ते-लड़ते पति की मौत, पत्नी को मिलेगी पेंशन की एकमुश्त रकम

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 24 वर्षों की कानूनी लड़ाई के बाद याचिकाकर्ता माया को पेंशन के लिए 7.50 लाख रुपये का एकमुश्त भुगतान करने का आदेश दिया है। उनके पति ने पहले 12 वर्षों तक इस मामले में संघर्ष किया, जिसके बाद उनकी पत्नी ने इसे आगे बढ़ाया। न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता के पति को एक गलत शासनादेश के आधार पर पेंशन से वंचित किया गया था, जबकि वे 1982 के शासनादेश के अनुसार पेंशन के पात्र थे।

24 साल की कानूनी लड़ाई को मिला मुकाम
24 साल की कानूनी लड़ाई को मिला मुकाम

प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट में पेंशन के लिए 24 वर्षों से चली आ रही कानूनी लड़ाई आखिरकार अपने अंजाम पर पहुंच गई है। इस मामले में पहले 12 वर्षों तक पति ने संघर्ष किया और उसके बाद लगभग इतने ही वर्षों तक पत्नी ने इस लड़ाई को जारी रखा। न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकलपीठ ने मेरठ निवासी याची माया को विभाग द्वारा एकमुश्त 7.50 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया है। 


गलत शासनादेश के कारण पेंशन से वंचित याची के पति को न्याय

कोर्ट ने कहा कि याची के पति को पेंशन प्राप्त करने का अधिकार होने के बावजूद, उसे गलत शासनादेश के आधार पर पेंशन से वंचित कर दिया गया। वह चार दिसंबर 1982 के शासनादेश के तहत पेंशन का हकदार था, लेकिन इस तथ्य की अनदेखी की गई। उसे 1973 के शासनादेश के आधार पर पेंशन के लिए अपात्र घोषित कर दिया गया, जबकि यह शासनादेश उसके मामले में लागू नहीं होता था। 


पारिवारिक पेंशन पर अदालत का महत्वपूर्ण निर्णय

अदालत ने 5 मार्च 2008 के विभागीय आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें पेंशन के लिए न्यूनतम योग्यता न होने के आधार पर पेंशन का हकदार नहीं माना गया था। अदालत ने कहा कि पेंशन या सांकेतिक पेंशन प्रदान की जा सकती है, लेकिन वर्तमान मामला पारिवारिक पेंशन से संबंधित है।


याची को विशेष परिस्थितियों में एकमुश्त राशि प्रदान करने का निर्णय

लंबे अंतराल के कारण गणना जटिल हो गई है, इसलिए याची को विशेष परिस्थितियों के कारण सात लाख 50 हजार रुपये की एकमुश्त राशि प्रदान की जाए। मामले से संबंधित तथ्यों के अनुसार, याची के पति सालगराम की नियुक्ति 19 नवंबर 1963 को करमालीपुर गढ़ी, बागपत मेरठ स्थित प्राइमरी स्कूल में अप्रशिक्षित अध्यापक के रूप में हुई थी। वे 30 जून 1991 को सेवानिवृत्त हुए। 


34 वर्षों की सेवा के बाद भी पेंशन से वंचित: हाई कोर्ट का हस्तक्षेप

याचिकाकर्ता का दावा था कि उनकी सेवा पहली अक्टूबर 1957 से आरंभ हुई थी। उन्होंने कुल 34 वर्षों की सेवा की, परंतु उन्हें पेंशन प्राप्त नहीं हुई। 1999 में याचिका दायर करने पर हाई कोर्ट ने 25 जनवरी 2000 को बीएसए को मामले का निपटारा करने का आदेश दिया। 


पेंशन के लिए सेवा अवधि की अनिवार्यता पर बीएसए का निर्णय

बीएसए ने कहा कि याची को प्रशिक्षण से छूट प्राप्त नहीं थी। 1973 के शासनादेश के अनुसार, पेंशन के लिए 15 वर्षों की सेवा अनिवार्य है, जबकि याची की सेवा अवधि केवल नौ वर्ष आठ माह और छह दिन है। इस निर्णय को चुनौती दी गई थी। वर्ष 2000 में दायर रिट पर जनवरी 2008 में निर्णय हुआ। 


पांच मार्च 2008 को बीएसए ने अपने आदेश में याची को पेंशन के लिए अयोग्य घोषित किया। इस निर्णय के विरुद्ध अवमानना याचिका दायर की गई, किंतु निर्णय से पूर्व ही 19 अप्रैल 2011 को सालगराम का निधन हो गया। 


पेंशन के लिए माया की कानूनी लड़ाई: गलत शासनादेश का विरोध

वर्ष 2013 में माया ने अपने पति को पेंशन और स्वयं को पारिवारिक पेंशन प्रदान करने की मांग करते हुए याचिका दायर की। उन्होंने तर्क दिया कि 1982 के शासनादेश के अनुसार पेंशन के लिए 10 वर्षों की सेवा पर्याप्त मानी गई है। बीएसए ने गलत शासनादेश का हवाला देते हुए पेंशन देने से इनकार किया है, अतः इस आदेश को रद्द किया जाए।



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