माघी पूर्णिमा 2025:इस दिन डुबकी के साथ पूर्ण होगा महाकुम्भ कल्पवास व्रत
- Deepak Singh Sisodia
- Feb 9
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करोड़ों लोगों की आस्था और विश्वास का प्रतीक माघ मास, माघी पूर्णिमा के स्नान और दान के साथ पूर्ण होता है, और इसी के साथ एक माह का कल्पवास भी समाप्त होता है। माघ पूर्णिमा के दिन स्नान और दान का विशेष महत्व होता है, और इस दिन स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। आइए, माघी पूर्णिमा के महत्व पर दृष्टि डालते हैं।

गंगा की रेती पर एक माह से निवास कर रहे कल्पवासी रेणुका प्रसाद (संगम की रेती) आस्था की नगरी से विदा होंगे। माघ मास की पूर्णिमा, जिसे माघी पूर्णिमा भी कहा जाता है, माघ स्नान पर्वों की श्रृंखला का अंतिम स्नान पर्व है। इस वर्ष प्रयागराज में महाकुंभ का भव्य मेला आयोजित किया गया है। बसंत पंचमी के स्नान के बाद अखाड़ों के साधु-संत धीरे-धीरे महाकुंभ नगरी से प्रस्थान कर रहे हैं, और माघी पूर्णिमा के अवसर पर कल्पवासी भी स्नान कर महाकुंभ क्षेत्र से अपने-अपने घरों की ओर प्रस्थान करेंगे। उल्लेखनीय है कि माघी पूर्णिमा के बाद महाशिवरात्रि पर स्नान के साथ महाकुंभ की पूर्णता होगी। प्रत्येक पूर्णिमा का अपना विशेष महत्व होता है, लेकिन माघी पूर्णिमा का महत्व अद्वितीय है।
माघी पूर्णिमा: मोक्ष और इच्छाओं की पूर्ति का पावन पर्व
धर्मशास्त्रों के अनुसार, इस दिन स्नान और ध्यान करने से न केवल इच्छाएँ पूरी होती हैं, बल्कि मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। माघी पूर्णिमा के दिन स्नान, दान, जप, हवन आदि करने से अनंत फल की प्राप्ति होती है और नवग्रहों से संबंधित दोष समाप्त हो जाते हैं। इस दिन चन्द्रमा अपनी अमृतमयी किरणों से पृथ्वी के जल में एक विशिष्ट तत्व का संचार करता है, जो सामान्य व्यक्ति के कष्टों का निवारण करता है। महाकुंभ के दौरान प्रयागराज का संगम तट माघी पूर्णिमा के दिन लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बनेगा। माघी पूर्णिमा के व्रत को बत्तीसी पूर्णिमा का व्रत भी कहा जाता है। विधिपूर्वक इस पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल तिलों से स्नान किया जाता है। पुत्र और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए मध्याह्न में भगवान शिव शंकर की पूजा की जाती है। माघ मास में शीत ऋतु समाप्त होती है और बसंत ऋतु का आगमन होता है, जिससे मौसम सुहावना हो जाता है। इस मास की पूर्णिमा के दिन यज्ञ, तप और दान का विशेष महत्व है। इस दिन गंगा स्नान करने से मनुष्य की समस्त बाधाएँ दूर हो जाती हैं।
खरबूजे के बीज के लड्डू और काले तिलों के हवन की परंपरा
इस दिन की परंपरा के अनुसार, खरबूजे के बीज से बने लड्डू के भीतर सोने या चाँदी के आभूषण छिपाकर ब्राह्मण को दान स्वरूप प्रदान किया जाता है। इस अवसर पर काले तिलों से हवन करना चाहिए और इन्हीं तिलों से पितरों को तपर्ण करना चाहिए, जिससे पितरों की अतृप्त आत्मा को शांति प्राप्त होती है।




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