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जीरो, जीरो, जीरो... दिल्ली में हार की हैट्रिक, कांग्रेस के लिए कितने सबक?

दिल्ली चुनाव परिणाम 2025: दिल्ली में कांग्रेस ने चुनाव से पहले सक्रियता प्रदर्शित करते हुए मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने का प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो सकी। पार्टी का वोट प्रतिशत मात्र 6.35 प्रतिशत तक पहुंचा। कांग्रेस को संगठन को सुदृढ़ करने और मतदाताओं को सक्रिय करने की आवश्यकता है। चुनावी सफलता प्राप्त करने के लिए पूरे 5 वर्षों तक मेहनत करनी होगी।

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नई दिल्ली: दिल्ली में कांग्रेस ने चुनाव से कुछ महीने पहले सक्रिय होकर चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने का प्रयास किया, लेकिन सच्चाई यह है कि कांग्रेस अपनी सभी कोशिशों के बावजूद लगातार अपना खाता खोलने में असफल रही और उसका वोट प्रतिशत भी दहाई के अंक तक नहीं पहुंच सका। शनिवार को आए नतीजों के बाद कांग्रेस इस बात से संतुष्ट हो सकती है कि उसने शीला दीक्षित की हार का बदला ले लिया और आप को चौथी बार सत्ता में आने से रोक दिया। हालांकि, आंकड़ों के अनुसार, कांग्रेस के पास वोट प्रतिशत के संदर्भ में अत्यधिक खुश होने का कोई कारण नहीं है। 2020 में कांग्रेस का दिल्ली में वोट प्रतिशत 4.26 था, जो इस बार थोड़ा बढ़कर 6.35 हो गया है, अर्थात केवल डेढ़ प्रतिशत का इजाफा हुआ है।


कांग्रेस के लिए चुनावी सफलता का सबक: विजेता बनने की रणनीति

इन नतीजों से कांग्रेस के लिए एक महत्वपूर्ण सबक मिलता है कि देश की सबसे बड़ी पार्टी को किसी भी चुनाव में खेल बिगाड़ने वाले के रूप में नहीं, बल्कि विजेता बनने के उद्देश्य से भाग लेना चाहिए। थोड़े समय की सक्रियता ने पार्टी को चर्चा में तो ला दिया, लेकिन यह चर्चा न तो वोट में विशेष अंतर ला सकी और न ही सीटें जितवा सकी। कांग्रेस को समझना होगा कि चुनाव से कुछ महीने या दिल्ली के मामले में कुछ हफ्ते पहले की सक्रियता के भरोसे चुनावी सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती। कांग्रेस की एक बड़ी समस्या लगातार उसका जमीनी आधार सिकुड़ना है, जो दिल्ली के मामले में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।


कांग्रेस के लिए संगठन निर्माण की अनिवार्यता

चाहे बीजेपी हो या आप, दोनों ने ही जीत और हार की परिस्थितियों में अपने वोट आधार को लगभग स्थिर बनाए रखा है, जिसमें कोई विशेष गिरावट नहीं आई। हालांकि, कांग्रेस को अपने जमीनी आधार को मजबूत करने के लिए सबसे पहले अपने संगठन पर ध्यान केंद्रित करना होगा और नेताओं की एक नई पीढ़ी तैयार करनी होगी। हरियाणा, दिल्ली सहित कई राज्यों में कांग्रेस को अपने संगठन में वर्षों से खाली पदों को भरना होगा। संगठन निर्माण की प्रक्रिया को उसे तेज करना होगा, ताकि संगठन मजबूत हो सके। बिना संगठन के जमीन पर चुनाव नहीं लड़ा जा सकता और न ही मतदाताओं को मतदान केंद्र तक लाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। दिल्ली में बीजेपी की तमाम सीटों पर हुई बेहद नजदीकी जीत के पीछे उसके बूथ प्रबंधन को भी एक कारण माना जा रहा है।


कांग्रेस के लिए नए नेतृत्व की आवश्यकता और मतदाताओं की बदलती प्राथमिकताएं

कांग्रेस को नए नेताओं के चेहरे तैयार करने की आवश्यकता है, क्योंकि आज के मतदाता बार-बार पुराने चेहरों पर निर्भरता पसंद नहीं करते। कांग्रेस की समस्या यह है कि वह मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के बजाय विरोधी से निराश होकर उनके आने की प्रतीक्षा करती है। यह आवश्यक नहीं है कि एक से निराश होकर मतदाता उसकी ओर ही आएं; कई बार वे निराश होकर किसी तीसरे विकल्प की ओर चले जाते हैं। आम आदमी पार्टी का उदय कई राज्यों में इसी प्रकार हुआ।


कांग्रेस के लिए सतत सक्रियता और स्पष्ट रणनीति की आवश्यकता

कांग्रेस के लिए यह एक महत्वपूर्ण सबक है कि उसे केवल चुनाव के समय ही नहीं, बल्कि पूरे पांच वर्षों में सक्रिय रूप से कार्य करना होगा। हर क्षेत्र में संगठन को मजबूत करते हुए कुछ प्रमुख चेहरों को सक्रिय करना होगा और उन्हें जिम्मेदारियां देनी होंगी, ताकि वे निरंतर पांच वर्षों तक कार्यरत रहें। यह प्रयास उसे भाजपा के साथ सीधे मुकाबले वाले राज्यों से लेकर गठबंधन वाले राज्यों में भी करना होगा। राष्ट्रीय नेतृत्व को अपनी नीतियों में स्पष्टता लानी होगी। वास्तव में, जिस प्रकार से कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व चुनाव से मात्र तीन सप्ताह पहले तक दिल्ली में आप के खिलाफ आक्रामक प्रचार को लेकर अनिश्चित दिखा, उसका प्रभाव परिणामों पर भी पड़ा। इस वर्ष जहां बिहार में चुनाव होने हैं, वहीं बंगाल, केरल, तमिलनाडु से लेकर असम जैसे राज्यों में भी चुनाव होने हैं, जहां कई स्थानों पर वह सहयोगी की भूमिका में है तो कहीं मुख्य भूमिका में। ऐसे में कांग्रेस को अपनी रणनीति को इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सुदृढ़ करना होगा।


कांग्रेस की रणनीति में बदलाव की आवश्यकता: एससी और अल्पसंख्यकों के वोटों की चुनौती

दिल्ली के परिणामों से यह स्पष्ट है कि कांग्रेस, जो एससी और अल्पसंख्यकों के वोट के आधार पर अपनी विजय की योजना बना रही थी, उसे भी निराशा का सामना करना पड़ा है। पार्टी दलितों और मुस्लिमों के वोट बैंक को अपनी ओर आकर्षित करने में पूरी तरह सफल नहीं हो पाई। ये वोट आप में चले गए, वहीं यह भी माना जा रहा है कि कुछ स्थानों पर दलितों के साथ मुस्लिमों ने भी बीजेपी का समर्थन किया। ऐसे में कांग्रेस को मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए अपनी रणनीति को नए सिरे से तैयार करना होगा, जिसमें किसी विशेष वर्ग पर निर्भर रहने के बजाय उसे अपनी पहुंच का दायरा बढ़ाना होगा।

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