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भारत में आतंकवाद की कहानी काफी पुरानी, जानिए किस सरकार में कितने हुए अटैक और कैसे दिया जवाब

भारत दशकों से आतंकवाद की चुनौती का सामना कर रहा है। 1993 के मुंबई धमाकों से लेकर 2025 के पहलगाम हमले तक कई गंभीर घटनाएं घटी हैं। यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान हमलों में वृद्धि देखी गई, जिसके पश्चात एनडीए सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक जैसे कड़े कदम उठाए।

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नई दिल्ली: भारत, जो अपनी विविधता और शांतिपूर्ण जीवन के लिए प्रसिद्ध है, कई दशकों से आतंकवाद के प्रकोप का सामना कर रहा है। मुंबई की व्यस्त सड़कों से लेकर कश्मीर की शांत घाटियों तक, आतंकवाद ने बार-बार देश को गहरे घाव दिए हैं। 1993 के मुंबई धमाकों से लेकर 2025 के पहलगाम हमले तक, यह कहानी खून, आंसुओं और प्रतिकार की है। आइए इस दर्दनाक इतिहास का विश्लेषण करें और समझें कि इस संघर्ष में भारत ने क्या खोया और क्या हासिल किया।


1993 के मुंबई बम धमाके: आतंकवाद की गंभीरता का पहला अहसास

1993 में मुंबई में हुए 13 सीरियल बम धमाकों ने भारत को पहली बार आतंकवाद की गंभीरता से अवगत कराया। दाऊद इब्राहिम की डी कंपनी ने स्टॉक एक्सचेंज, होटलों और बाजारों को निशाना बनाया। इन धमाकों में 257 लोगों की मृत्यु हुई और 700 से अधिक लोग घायल हुए। यह वह क्षण था जब भारत ने समझा कि आतंकवाद अब केवल कश्मीर तक सीमित नहीं है।


2000 का दशक: भारत में आतंकवाद के गंभीर हमले

2000 का दशक भारत के लिए आतंकवाद का अत्यंत गंभीर कालखंड रहा। 2001 में संसद भवन पर हमला, 2005 में दिल्ली के बाजारों में विस्फोट, 2006 में मुंबई की लोकल ट्रेनों में बम धमाके, और 2008 में जयपुर और मुंबई (26/11) में आतंकवादी हमले—इन घटनाओं ने देश को गहराई से प्रभावित किया। 26/11 का मुंबई हमला, जिसमें लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकवादियों ने ताज और ओबेरॉय होटल को बंधक बना लिया, भारत के इतिहास में सबसे गंभीर हमलों में से एक माना जाता है। इस हमले में 166 लोगों की मृत्यु और 293 लोग घायल हुए, जिससे भारत की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न उठे।


यूपीए सरकार के दौरान आतंकवादी हमलों की बढ़ती चुनौती

यूपीए सरकार (2004-2014) के कार्यकाल के दौरान आतंकी हमलों की संख्या में वृद्धि देखी गई। कुछ पोस्ट्स में यह दावा किया गया है कि इस अवधि में 22 शहरों में सीरियल ब्लास्ट हुए, जिनसे 30,000 से अधिक लोग प्रभावित हुए। हालांकि, यह आंकड़ा संभवतः अतिशयोक्तिपूर्ण हो सकता है, लेकिन 2005-2008 का समय निश्चित रूप से आतंकवाद के चरम पर था।


आतंकवाद से निपटने की रणनीति में बदलाव और नई चुनौतियां

2014 में एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद आतंकवाद से निपटने की रणनीति में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। 2016 के उड़ी हमले (20 सैनिक शहीद) और 2019 के पुलवामा हमले (40 सैनिक शहीद) के बाद भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयरस्ट्राइक जैसे निर्णायक कदम उठाए।


हालांकि, 2025 के पहलगाम हमले से यह स्पष्ट हुआ कि खतरा अभी समाप्त नहीं हुआ है। बैसरन वैली में पर्यटकों पर हुए इस हमले में 26 लोग मारे गए और आतंकियों ने सेना की वर्दी पहनकर हमला किया, जिससे सुरक्षा चुनौतियां और जटिल हो गईं।


आतंकवाद के बढ़ते तकनीकी आयाम और भारत की चुनौतियाँ

आजकल आतंकवादी केवल पारंपरिक हथियारों का उपयोग नहीं कर रहे हैं, बल्कि साइबर हमलों और तकनीकी साधनों का भी सहारा ले रहे हैं। दृष्टि आईएएस की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में भारत साइबर हमलों के मामले में दूसरा सबसे बड़ा लक्ष्य था। इसके अतिरिक्त, आतंकवादियों द्वारा सेना की वर्दी पहनने का नया चलन भी चिंता का विषय है।


आतंकवाद के आर्थिक और सामाजिक प्रभाव

आतंकवाद का प्रभाव केवल जान-माल तक सीमित नहीं रहता। एक अध्ययन के अनुसार, आतंकी हमले भारतीय शेयर बाजार को भी प्रभावित करते हैं। 2008 के मुंबई हमले के बाद सेंसेक्स में 3% की गिरावट दर्ज की गई, जिससे निवेशकों का विश्वास कमजोर हुआ। यह शोध (ResearchGate, 2018) दर्शाता है कि आतंकी हमले दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता को बाधित करते हैं। इसके अतिरिक्त, आतंकवाद सामाजिक एकता पर भी असर डालता है। एक अन्य अध्ययन (IJIP, 2023) में यह पाया गया कि आतंकी हमले स्थानीय समुदायों में भय और अविश्वास को बढ़ावा देते हैं, जिससे सामाजिक ताना-बाना कमजोर होता है।


आतंकवाद से निपटने के लिए भारत के कानूनी उपाय और चुनौतियाँ

भारत ने आतंकवाद से निपटने के लिए कई कानूनी उपाय किए हैं। 2008 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की स्थापना और गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (UAPA) में संशोधन इसके उदाहरण हैं। हालांकि, एक शोध (ResearchGate, 2013) में यह बताया गया है कि UAPA जैसे कानूनों की प्रभावशीलता सीमित रही है, क्योंकि इनके दुरुपयोग की आशंकाएं बनी रहती हैं। इसके अतिरिक्त, सीमा पार आतंकवाद को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की कमी एक बड़ी चुनौती है। अमेरिकी विदेश विभाग की 2021 की रिपोर्ट (State.gov) में कहा गया है कि भारत ने आतंकवाद-रोधी सहयोग के लिए कई देशों के साथ समझौते किए हैं, लेकिन पाकिस्तान के साथ तनाव इस प्रक्रिया को जटिल बनाता है।


ऑपरेशन सिंदूर: भारत की आतंकवाद-रोधी नीति में महत्वपूर्ण परिवर्तन

2025 के पहलगाम हमले के बाद, भारत ने ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत की, जिसके तहत पाकिस्तान और पीओके में स्थित आतंकी ठिकानों पर मिसाइल हमले किए गए। इंटरनेशनल सेंटर फॉर काउंटर-टेररिज्म (ICCT, 2025) की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह ऑपरेशन भारत की आतंकवाद-रोधी नीति में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन का संकेत है, जो सक्रिय प्रतिकारात्मक कार्रवाई पर बल देता है। हालांकि, रिपोर्ट यह भी इंगित करती है कि इस प्रकार के कदम क्षेत्रीय तनाव को बढ़ा सकते हैं, जैसा कि 2019 के भारत-पाकिस्तान संकट के दौरान देखा गया था (CSIS, 2019)।


आतंकवाद के खिलाफ भारत की रणनीतिक पहल: यूपीए से एनडीए तक

यूपीए (2004-2014): राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की स्थापना और गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (UAPA) में संशोधन किया गया। हालांकि, कुछ उपयोगकर्ताओं का यह दावा है कि इस अवधि में प्रतिशोधात्मक कार्रवाइयों की संख्या कम थी।


एनडीए (2014-2025): सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट एयरस्ट्राइक, और ऑपरेशन सिंदूर जैसे महत्वपूर्ण कदम उठाए गए। पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान और पीओके में आतंकवादी ठिकानों पर मिसाइल हमले किए।



आतंकवाद से निपटने के लिए भारत को खुफिया तंत्र, तकनीकी सतर्कता, और वैश्विक सहयोग को और अधिक सुदृढ़ करना आवश्यक है। राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) और राष्ट्रीय खुफिया नेटवर्क (NatGrid) जैसे संस्थान इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं।

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