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जब 120 जवानों ने 4000 पाकिस्‍तानी सैनिकों को खदेड़ा, छोड़ने पड़े थे टैंक-तोप और वाहन ; क्‍या है लोंगेवाला युद्ध की कहानी?

Longewala War 1971 में, मात्र 120 भारतीय सैनिकों ने 4,000 पाकिस्तानी सैनिकों को, उनके 46 टैंकों और भारी हथियारों के बावजूद, पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। यह जानने के लिए कि भारतीय सेना के इन 120 जवानों ने यह विजय कैसे प्राप्त की और मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी की रणनीति और साहस ने इस जीत में कैसे योगदान दिया, पढ़ें लोंगेवाला युद्ध की संपूर्ण कहानी...

लोंगेवाला की जंग: कैसे 120 भारतीय जवानों ने 4000 पाक सैनिकों को दी मात।
लोंगेवाला की जंग: कैसे 120 भारतीय जवानों ने 4000 पाक सैनिकों को दी मात।

नई दिल्ली। पाकिस्तान की प्रवृत्ति सदैव से ही विश्वासघात की रही है। 7 मई को, भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान में आतंकवादियों के नौ ठिकानों को नष्ट किया। इसके प्रतिउत्तर में, पाकिस्तानी सेना ने भारत के सीमावर्ती शहरों में सैन्य ठिकानों और नागरिक आबादी पर ड्रोन और मिसाइल से हमले किए।


जब भारत ने जवाबी कार्रवाई की, तो पाकिस्तानी सेना पराजित हो गई। घबराई हुई पाकिस्तानी सरकार ने अमेरिका से युद्धविराम की अपील की। जब दोनों देशों के बीच युद्धविराम हुआ, तो पाकिस्तानी सेना ने इसे 3 घंटे के भीतर ही तोड़ दिया। इसके बाद, भारतीय सेना की कार्रवाई ने उन्हें परास्त किया, जिसके बाद सीमा पर शांति स्थापित हुई।


लोंगेवाला की लड़ाई: 1971 के युद्ध में भारतीय सेना की अद्वितीय विजय

यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान ने ऐसा कदम उठाया हो। 1971 में भी इसी प्रकार की कार्रवाई की गई थी। उस समय, पाकिस्तानी सेना की अनुचित गतिविधियों के कारण एक महत्वपूर्ण युद्ध हुआ था, जिसने वैश्विक मानचित्र और दृष्टिकोण में परिवर्तन ला दिया था। इसने रणनीति को नए आयाम दिए। भारतीय सेना ने पाकिस्तान को विभाजित कर एक मिसाल कायम की थी। यह युद्ध जल, थल, और नभ में कई स्थानों और मोर्चों पर लड़ा गया था।


इन्हीं में से एक लोंगेवाला की लड़ाई थी। यह लड़ाई 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान पश्चिमी क्षेत्र में लड़ी गई प्रमुख निर्णायक लड़ाइयों में से एक थी। इस लड़ाई में मात्र 120 भारतीय सैनिकों ने 46 टैंकों और तोपखाने के साथ पूरी तैयारी से 'लोंगेवाला में नाश्ता, रामगढ़ में लंच और जोधपुर में डिनर' का सपना लेकर आए 4000 से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों को पराजित किया, जिसका उनके मनोबल पर दूरगामी प्रभाव पड़ा।

लोंगेवाला संघर्ष क्या था जिसके बाद पाकिस्तानी सेना के कई अधिकारियों को इस्तीफा देना पड़ा था, आइए हम आपको बताते हैं...

लोंगेवाला में पूरी तैयारी से हमला करने आए पाकिस्‍तानी सेना के टैंक की फोटो।
लोंगेवाला में पूरी तैयारी से हमला करने आए पाकिस्‍तानी सेना के टैंक की फोटो।

लोंगेवाला: भारत-पाकिस्तान सीमा पर रणनीतिक सुरक्षा चौकी

लोंगेवाला चेक पोस्ट, राजस्थान में भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थित एक छोटी सुरक्षा चौकी है। यह स्थान जैसलमेर से 120 किलोमीटर, रामगढ़ से 55 किलोमीटर, और अंतरराष्ट्रीय सीमा से 20 किलोमीटर की दूरी पर है। उस समय, यहां पंजाब रेजीमेंट की 23वीं बटालियन की एक टुकड़ी रेगिस्तान के निर्जन क्षेत्र में सीमा की निगरानी के लिए तैनात थी।


लोंगेवाला में सुरक्षा की तैयारी और रणनीतिक स्थिति

लोंगेवाला रामगढ़ रोड पर समतल भूमि पर एक हेलीपैड स्थापित किया गया था, जो सुरक्षा चौकी से 700 मीटर की दूरी पर स्थित था। लोंगेवाला में दुश्मन की निगाह पड़ने की संभावना नगण्य थी। इसलिए, यहां सेना की उपस्थिति तो थी, लेकिन कोई अतिरिक्त तैयारी नहीं की गई थी।


सैनिकों के पास दो मीडियम मशीन गन, 81 एमएम के दो मोर्टार, टैंकों से रक्षा के लिए कंधे से चलाए जाने वाले चार रॉकेट लॉन्चर और एक रिकॉइल गन थी। कुछ बारूदी सुरंगें भी उपलब्ध थीं, लेकिन उन्हें अभी तक बिछाया नहीं गया था।


भारतीय सेना का एक बड़ा हिस्सा पूर्वी सीमा पर व्यस्त था, जबकि शेष सेना जम्मू-कश्मीर और अन्य क्षेत्रों की सुरक्षा में तैनात थी। दिसंबर की शुरुआत में, थार क्षेत्र में अफवाहें थीं कि 'पाकिस्तानी दावा कर रहे हैं कि वे 4 दिसंबर को जैसलमेर में नाश्ता करेंगे।'


लोंगेवाला की चांदनी रात में टैंकों की गड़गड़ाहट

4-5 दिसंबर की रात चांदनी थी। लोंगेवाला के पास हल्की हवा बह रही थी। सुरक्षा चौकी के प्रभारी मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी ने कैप्टन धर्मवीर सिंह के नेतृत्व में कुछ सैनिकों को सीमा की ओर गश्त के लिए भेजा।


धर्मवीर सिंह ने एक साक्षात्कार में बताया था कि 4-5 दिसंबर की रात की शांति अचानक टैंकों के इंजन की हल्की आवाज और उनकी गड़गड़ाहट से बाधित हो गई। शुरुआत में किसी को यह अंदाजा नहीं था कि यह आवाज कहां से आ रही है। पूरी पलटन उस आवाज को सुनने और समझने का प्रयास कर रही थी।

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जब आवाज बढ़ती चली गई, तो मैंने कंपनी कमांडर मेजर ध्यानचंद से वायरलेस पर संपर्क किया। कमांडर ध्यानचंद ने पूरी स्थिति सुनने के बाद कहा कि हो सकता है कोई वाहन बालू में फंस गया हो, इसलिए अधिक चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। अब आराम से सो जाओ।


लगभग 12 बजे धर्मवीर ने पाकिस्तानी टैंक देखे। टैंक बहुत धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे और उनकी लाइटें बंद थीं। टैंक धीरे-धीरे इसलिए बढ़ रहे थे क्योंकि वे पक्की सड़क के बजाय रेत पर चल रहे थे। धर्मवीर ने कंपनी कमांडर को सूचित करने का प्रयास किया, लेकिन उनसे तुरंत संपर्क नहीं हो पाया। कुछ देर बाद संपर्क स्थापित हुआ और उन्होंने जानकारी दी।


पाकिस्तानी टैंकों की गलतफहमी से भारतीय सेना को मिला रणनीतिक लाभ

डॉ. यूपी थपलियाल ने अपनी पुस्तक 'द 1971 वॉर: एन इलस्ट्रेटेड हिस्ट्री' में उल्लेख किया है कि रात लगभग 12:30 बजे पाकिस्तानी टैंकों ने गोलाबारी शुरू कर दी थी। प्रारंभिक हमले में सीमा सुरक्षा बल (BSF) के पांच ऊंट मारे गए। पाकिस्तानी सेना के टैंक कंटीले तारों के पास आकर रुक गए, क्योंकि उन्हें लगा कि यहां बारूदी सुरंगें बिछी हुई हैं।


पाकिस्तानी सेना की इस गलतफहमी का लाभ उठाकर हमारे जवानों ने अपनी स्थिति को कुछ हद तक मजबूत किया। 5 दिसंबर की सुबह की पहली किरण के साथ ही पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय चौकी पर हमला कर दिया था। इससे पहले, पाकिस्तानी टैंकों को भारत-पाक सीमा से 16 किलोमीटर की दूरी तय करने में 6 घंटे से अधिक का समय लग गया था।


मेजर चांदपुरी का साहसिक निर्णय: अंतिम सांस तक लोंगेवाला की रक्षा

मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी पूरी रात बटालियन मुख्यालय से संपर्क स्थापित करने का प्रयास करते रहे। अंततः सुबह 4 बजे संपर्क हो सका। तब मेजर चांदपुरी ने मुख्यालय को सूचित किया कि पाकिस्तानी टैंक भारतीय क्षेत्र में प्रवेश कर चुके हैं और लोंगेवाला की ओर बढ़ रहे हैं। उन्होंने फोन पर सहायता और हथियारों की मांग की।


हालांकि, सुबह से पहले कोई सहायता उपलब्ध नहीं हो सकती थी। ऐसे में मेजर चांदपुरी के पास दो विकल्प थे - पहला, बटालियन के साथ अंतिम सांस तक लड़ाई करना, और दूसरा, बटालियन के साथ चेक पोस्ट छोड़ देना। लेकिन मेजर चांदपुरी और उनकी पूरी बटालियन ने अंतिम सांस तक लड़ने का निर्णय लिया। बटालियन ने पूरी रात पाकिस्तानी सेना के हजारों सैनिकों को रोके रखा।

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लोंगेवाला में चुनौतीपूर्ण स्थिति का सामना: मेजर जनरल थंबाटा की रणनीति

मेजर जनरल आरएफ थंबाटा को जब लोंगेवाला में पाकिस्तानी सेना के आक्रमण की सूचना मिली, तो वे आश्चर्यचकित रह गए। उन्हें स्थिति की गंभीरता का तुरंत आभास हो गया।


वे यह समझते थे कि सीमित संसाधनों के साथ दुश्मन का सामना करना चुनौतीपूर्ण होगा। इस परिस्थिति में, वायुसेना ही उनकी एकमात्र आशा थी। रात के 2 बजे उन्होंने जैसलमेर एयरबेस के कमांडर एमएस बावा से वायरलेस रेडियो के माध्यम से संपर्क किया।


जैसलमेर एयरबेस पर हंटर विमानों की निर्णायक भूमिका

जैसलमेर एयरबेस पर हंटर लड़ाकू विमान तैनात थे, जो रात में उड़ान भरने में सक्षम नहीं थे। इस स्थिति में, सुबह तक इंतजार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। बेस कमांडर ने मेजर आरएफ थंबाटा को आश्वस्त किया कि सुबह की पहली किरण के साथ ही हंटर विमान उड़ान भरेंगे और पाकिस्तानी टैंकों को निशाना बनाकर देश की पश्चिमी सीमा पर उत्पन्न खतरे को निष्प्रभावी करने का प्रयास करेंगे।


सुबह लगभग 4 बजे, कमांडर एमएस बावा ने स्क्वाड्रन लीडर आरएन बाली को स्थिति से अवगत कराया। एयर मार्शल भरत कुमार ने अपनी पुस्तक 'द एपिक बैटल ऑफ लोंगेवाला' में इस घटना का उल्लेख किया है।


लोंगेवाला की सुरक्षा के लिए मेजर चांदपुरी का साहसिक प्रयास

प्रातः 5:15 बजे मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी ने ब्रिगेडियर रामदौंस से संपर्क स्थापित किया। उस समय, पाकिस्तानी सेना का अग्रणी टैंक लोंगेवाला पोस्ट के दक्षिण-पश्चिम में घोटारू सड़क से एक किलोमीटर से भी कम दूरी पर था।


चांदपुरी ने रिकॉइल गन से उस पर प्रहार किया, लेकिन निशाना चूक गया। प्रतिकार में, कुछ ही क्षणों में पाकिस्तानी टैंक ने सुरक्षा चौकी को मलबे में तब्दील कर दिया और ऊंटों के लिए रखे चारे में आग लगा दी। उस समय केवल चेक पोस्ट के समीप स्थित तनोट माता का मंदिर ही सुरक्षित बचा था।

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लोंगेवाला युद्ध का आँखों देखा हाल: ब्रिगेडियर जेड ए खान की पुस्तक से

पाकिस्तानी सेना से सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर जेड ए खान ने 'द वे इट वॉज, इनसाइड द पाकिस्तानी आर्मी' शीर्षक से एक पुस्तक लिखी है, जिसमें लोंगेवाला युद्ध का भी उल्लेख किया गया है। खान ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि लोंगेवाला चेक पोस्ट पर हमले के समय मैं जीप में सबसे आगे चल रहा था। हम सुरक्षा चौकी के दक्षिणी रिज तक पहुंच चुके थे। साढ़े सात बजे मुझे लोंगेवाला की दिशा से धमाकों की आवाज सुनाई दी। आसमान धुएं से भरा हुआ था।


लोंगेवाला में भारतीय हंटर विमानों का साहसिक हस्तक्षेप

पाकिस्तानी टैंक लोंगेवाला चौकी पर अगले हमले की तैयारी में थे, जब जैसलमेर से भारतीय लड़ाकू विमान हंटर वहां पहुंच गए। उस समय पाकिस्तानी लीड टैंक लोंगेवाला चेक पोस्ट से मात्र 800 मीटर की दूरी पर था। लड़ाकू विमानों को देखते ही पाकिस्तानी टैंक गोलाकार में घूमकर धुआं छोड़ने लगे। हंटर विमान स्क्वाड्रन लीडर डी के दास और फ्लाइट लेफ्टिनेंट रमेश गोसाई द्वारा संचालित किए जा रहे थे।


लोंगेवाला में हवाई हमले का रोमांचक विवरण

स्क्वाड्रन लीडर डी के दास ने बाद में एक टीवी साक्षात्कार में बताया, "हंटर विमान लेकर जब हम लोंगेवाला के पास पहुंचे, तो नीचे का दृश्य अविस्मरणीय था। जमीन पर दुश्मन के टैंक काली माचिस के डिब्बों की तरह दिखाई दे रहे थे। कुछ स्थिर थे और कुछ चल रहे थे।"


दुश्मन ने हंटर विमान को देखते ही हमारे ऊपर ट्रेसर फायर शुरू कर दिए थे। मैंने रमेश से कहा कि विमानभेदी तोपों से बचने के लिए हमें 3500 फुट की ऊंचाई पर जाना चाहिए।


ऊपर से देखा कि एक पाकिस्तानी टैंक रेत के एक टीले के पास सुरक्षित स्थान पर खड़ा था, जबकि दूसरा हेलीपैड की ओर बढ़ रहा था। मैंने उन दोनों टैंकों को निशाना बनाने का निर्णय लिया। 3500 फुट की ऊंचाई से नीचे डाइव करते हुए 900 फुट की ऊंचाई पर जाकर उन पर रॉकेट फायर किए।


हवाई हमले के दौरान टैंकों पर निशाना साधने की चुनौती

डाइविंग के दौरान, हम तेजी से नीचे आते हैं और विमानभेदी तोपों की रेंज में आ जाते हैं। तुरंत दिशा बदलकर हम फिर से ऊपर की ओर बढ़ जाते हैं। इसी बीच, जैसे ही मेरे रॉकेट ने हेलीपैड की ओर बढ़ रहे टैंक को निशाना बनाया, सभी टैंकों ने आगे बढ़ना रोक दिया।


फ्लाइट लेफ्टिनेंट रमेश गोसाई भी मेरी तरह नीचे आए और एक टैंक को नष्ट कर दिया। इसके बाद, हमने दो से तीन बार और टैंकों पर हमला किया। ऊपर से हो रहे हमलों से बचने के लिए पाकिस्तानी टैंकों ने जिगजैग चलना शुरू कर दिया, जिससे तेजी से धूल उड़ने लगी। इस स्थिति में, हमारे लिए टैंकों को निशाना बनाना चुनौतीपूर्ण हो गया।

लोंगेवाला युद्ध स्‍मारक में रखा भारतीय सेना का लड़ाकू विमान हंटर।
लोंगेवाला युद्ध स्‍मारक में रखा भारतीय सेना का लड़ाकू विमान हंटर।

भारतीय वायुसेना की निर्णायक जीत: पाकिस्तानी टैंकों का विध्वंस

रॉकेट समाप्त होने पर स्क्वाड्रन लीडर दास ने '30 एमएम एडम गन' से एक टैंक को निशाना बनाया, जिसके परिणामस्वरूप टैंक में आग लग गई। जमीन पर सेना और आसमान में वायुसेना ने मोर्चा संभाल रखा था। शाम तक भारतीय पायलट समय-समय पर पाकिस्तानी टैंकों पर हमले कर रहे थे। दोपहर तक भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के 17 टैंकों और 23 अन्य वाहनों को नष्ट कर दिया था। 


लोंगेवाला की लड़ाई: पाकिस्तानी सेना की रणनीति और भारतीय वायुसेना का प्रतिरोध

किताब 'द वे इट वॉज, इनसाइड द पाकिस्तानी आर्मी' में उल्लेख है कि सुबह 7 बजे से भारतीय वायुसेना के चार हंटर विमानों ने लगातार हमारे ऊपर बमबारी की। जैसे ही शाम ढली और अंधेरा छा गया, हवाई हमले थम गए।


उस समय पाकिस्तानी सेना के सामने दो विकल्प थे: पहला, वे अपनी सीमा में लौट जाएं, और दूसरा, फिर से तैयारी कर अपने मूल लक्ष्यों, रामगढ़ और जैसलमेर, पर पुनः कब्जा करने का प्रयास करें।


उस रात पाकिस्तानी सैनिक लौट गए, लेकिन लोंगेवाला पर कब्जा करने का विकल्प उनके पास मौजूद था। पाकिस्तानी सेना ने अगली सुबह लोंगेवाला पर हमला करने की योजना बनाई। 28 बलूच रेजीमेंट को निर्देश दिया गया कि वे लोंगेवाला-जैसलमेर रोड पर आगे बढ़ें और घोटारू पर कब्जा कर लें।


लोंगेवाला की वीरता: 120 जवानों की अदम्य साहसिक गाथा

पाकिस्तानी सेना की योजना भले ही उत्कृष्ट रही हो, लेकिन हमारे मात्र 120 जवानों ने उनके इरादों को सफल नहीं होने दिया। 6 दिसंबर की शाम तक लोंगेवाला का युद्ध समाप्त हो गया। पाकिस्तानी सैनिकों को अपने टैंक और तोपखाना छोड़कर जान बचाकर पीछे हटने पर विवश कर दिया गया।

पाकिस्‍तानी टैंक पर जीत की खुशी मनाते भारतीय सैनिक।
पाकिस्‍तानी टैंक पर जीत की खुशी मनाते भारतीय सैनिक।

रणनीति और बहादुरी से दुश्मन की करारी हार

4000 पाकिस्तानी सैनिकों और 46 टैंकों, तोपों, तथा पर्याप्त मात्रा में गोला-बारूद के बावजूद, हमारे जवानों ने अपनी रणनीति और बहादुरी से दुश्मन को बुरी तरह पराजित किया। इस लड़ाई में 200 से अधिक पाकिस्तानी सैनिक मारे गए, और 46 में से 36 टैंक तथा 500 से अधिक हथियारबंद वाहन नष्ट हो गए।


लोंगेवाला की लड़ाई में भारतीय सेना की ऐतिहासिक विजय

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह पहली बार था जब किसी एक देश ने एक ही लड़ाई में इतनी बड़ी संख्या में अपने टैंक खो दिए। इस पराजय से पाकिस्तानी सेना का मनोबल काफी प्रभावित हुआ। लोंगेवाला की लड़ाई में शौर्यपूर्वक दुश्मन को परास्त करने के लिए मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी को देश के दूसरे सबसे बड़े सैन्य सम्मान, महावीर चक्र, से सम्मानित किया गया।

महावीर चक्र सम्‍मान लेते मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी।
महावीर चक्र सम्‍मान लेते मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी।

लोंगेवाला युद्ध स्मारक: भारतीय वीरता की अमर गाथा

लोंगेवाला पोस्ट को अब 'इंडो-पाक पिलर 638' के रूप में जाना जाता है। भारत ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के जीवंत चित्रण के लिए लोंगेवाला में युद्ध स्मारक और जैसलमेर से 10 किमी दूर एक युद्ध संग्रहालय स्थापित किया है।


यहां पाकिस्तानी सेना के टैंक, आरसीएल हंटर विमान और भारतीय सैनिकों के हथियार प्रदर्शित किए गए हैं। 15 मिनट की एक डॉक्यूमेंट्री भी दिखाई जाती है। हर साल हजारों पर्यटक यहां आकर भारतीय वीरों की गाथा के साक्षी बनते हैं। यह उल्लेखनीय है कि इस लड़ाई पर आधारित एक बॉलीवुड फिल्म भी बनाई गई है।

लोंगेवाला युद्ध स्‍मारक में प्रदर्शनी में रखा पाकिस्‍तानी सेना का टैंक।
लोंगेवाला युद्ध स्‍मारक में प्रदर्शनी में रखा पाकिस्‍तानी सेना का टैंक।

तनोट माता मंदिर: युद्ध के दौरान चमत्कारिक सुरक्षा की गाथा

भारत-पाकिस्तान युद्ध के पश्चात तनोट माता मंदिर विशेष रूप से चर्चा में आया। स्थानीय निवासियों का मानना है कि यह तनोट माता का ही चमत्कार था कि भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना द्वारा फेंके गए सैकड़ों बम नहीं फटे। भारतीय सेना को ये निष्क्रिय बम तनोट मंदिर परिसर में मिले। सेना ने इनमें से कुछ बम आज भी मंदिर में प्रदर्शित किए हैं, जो माता के चमत्कार की गवाही देते हैं।

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