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मोहम्मद यूनुस तो फंस गए...चिकन नेक पर भारत से दुश्मनी और चीन-पाक की दोस्ती भी काम नहीं आई

मुहम्मद युनुस बांग्लादेश की चुनौती: बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद युनूस का पद खतरे में है। भारत का विरोध भी उनकी स्थिति को सुरक्षित नहीं रख पाएगा।

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नई दिल्ली: बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस गंभीर संकट में हैं। शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद, यूनुस ने स्वयं को बांग्लादेश का प्रमुख नेता मान लिया था। हालांकि, वे यह भूल गए कि उनकी शक्ति का नियंत्रण बांग्लादेश की सेना के हाथों में है। यूनुस ने एक समय चीन और पाकिस्तान के साथ मित्रता की वकालत की थी, लेकिन अब इस संकट के समय शायद ही कोई उनका समर्थन करेगा। बांग्लादेश की सेना ने यूनुस को तीन महीने का लक्ष्य दिया है, जिससे चिंतित होकर वे इस्तीफा दे सकते हैं। इस बीच, भारत ने कालादान परियोजना को तेजी से पूरा करने का संकल्प लिया है और बांग्लादेश को दी गई एक महत्वपूर्ण ट्रांस शिपमेंट सुविधा वापस ले ली है, जिससे बांग्लादेश का भूटान, नेपाल और म्यांमार के साथ व्यापार प्रभावित हो रहा है।


मोहम्मद यूनुस की सरकार पर संकट: इस्तीफे की अटकलें और अंतरराष्ट्रीय दबाव

मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली सरकार किसी भी समय गिर सकती है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, ऐसा कहा जा रहा है कि सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस इस्तीफा देने पर विचार कर रहे हैं। सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमान ने उन्हें स्पष्ट चेतावनी दी है, जिसमें उन्होंने इस वर्ष दिसंबर तक राष्ट्रीय चुनाव कराने की बात कही है। इसके साथ ही, हिंदुओं पर हो रहे हमलों के कारण यूनुस वैश्विक समुदाय के आलोचना के केंद्र में हैं। इस मुद्दे पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी अपनी चिंता व्यक्त कर चुके हैं।



भारत के चिकन नेक के समीप बढ़ती चुनौतियों के बीच कालादान प्रोजेक्ट का समाधान

इससे पहले, यूनुस ने भारत के चिकन नेक को लेकर एक प्रकार की धमकी दी थी और चीन को संतुष्ट करने का प्रयास किया था। उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को भारत की सीमा के करीब लालमोनिरहाट जिले में एक एयरबेस बनाने का सुझाव दिया था। लालमोनिरहाट भारत के चिकन नेक कॉरिडोर के समीप स्थित है। अब भारत ने इसका समाधान तैयार कर लिया है। उसने कालादान प्रोजेक्ट को तेजी से पूरा करने के लिए तैयारी कर ली है।



चिकन नेक: पूर्वोत्तर भारत का महत्वपूर्ण भूभाग

चिकन नेक पूर्वोत्तर भारत के सात राज्यों अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा को शेष भारत से जोड़ने वाला एकमात्र भूभाग है। इसे सिलीगुड़ी कॉरिडोर भी कहा जाता है। यह भारत के पश्चिम बंगाल में स्थित एक संकीर्ण भूभाग है, जो उत्तर-पूर्वी राज्यों को देश के अन्य हिस्सों से जोड़ता है। यह क्षेत्र भौगोलिक और रणनीतिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण है।


कालादान प्रोजेक्ट: भारत की रणनीतिक पहल

भारत ने यूनुस को सबक सिखाने के उद्देश्य से कालादान प्रोजेक्ट को 2025 तक पूरा करने की योजना बनाई है और इस संदर्भ में हाल ही में म्यांमार के अधिकारियों के साथ वार्ता को तेज कर दिया है। दरअसल, चीन और बांग्लादेश के गठबंधन से चिकन नेक क्षेत्र में भविष्य में संभावित चुनौतियों का सामना करने की संभावना है। इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए, भारत ने समुद्री मार्ग के माध्यम से पूर्वोत्तर राज्यों को जोड़ने के लिए एक वैकल्पिक मार्ग तैयार करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।


भारत की भू-राजनीतिक रणनीति में कालादान परियोजना की महत्वपूर्ण भूमिका

भारत और म्यांमार के बीच स्थित कालादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट न केवल एक इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजना है, बल्कि यह भारत की भू-राजनीतिक रणनीति का महत्वपूर्ण अंग भी है। यह परियोजना सामरिक, आर्थिक और रणनीतिक दृष्टिकोण से भारत के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है, विशेषकर ऐसे समय में जब चीन अपने पड़ोसी देशों में गहरी पैठ बना रहा है और बांग्लादेश जैसे पुराने सहयोगी भी धीरे-धीरे चीन के प्रभाव में आ रहे हैं।


कालादान परियोजना: भारत-म्यांमार कनेक्टिविटी का मल्टी-मॉडल दृष्टिकोण

कालादान परियोजना का आरंभ वर्ष 2008 में हुआ था। इस परियोजना का उद्देश्य भारत के कोलकाता बंदरगाह को म्यांमार के सित्तवे पोर्ट के माध्यम से मिजोरम से जोड़ना है। इस परियोजना में समुद्री, नदी और सड़क मार्ग शामिल हैं, जो इसे 'मल्टी-मॉडल' बनाते हैं।


भारत के सित्तवे पोर्ट का निर्माण: रणनीतिक और आर्थिक महत्व

भारत ने म्यांमार के सित्तवे पोर्ट का निर्माण किया है और इसका संचालनात्मक नियंत्रण भारत के पास है। इस पोर्ट को चीन के कयाकफ्यू पोर्ट के जवाब के रूप में देखा जा रहा है। इसके माध्यम से न केवल भारत की नौसैनिक पहुंच म्यांमार तक विस्तारित होती है, बल्कि यह पूर्वोत्तर राज्यों के लिए एक सुरक्षित आपूर्ति श्रृंखला भी स्थापित करता है।


भारत-बांग्लादेश संबंधों में तनाव: शेख हसीना के प्रस्थान के बाद की स्थिति

पिछले वर्ष, पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के ढाका छोड़ने के बाद से भारत और बांग्लादेश के बीच संबंधों में काफी तनाव उत्पन्न हो गया है। बांग्लादेश में लगातार हिंदुओं पर हो रहे हमलों के कारण द्विपक्षीय संबंधों में खटास बढ़ती गई है। अगस्त 2024 में बांग्लादेश में छात्रों के नेतृत्व में हुए आंदोलन के बाद, जो कई हफ्तों तक चले विरोध और हिंसा का कारण बना, प्रधानमंत्री शेख हसीना को सत्ता से हटना पड़ा। इस आंदोलन में 600 से अधिक लोगों की जान चली गई। 76 वर्षीय हसीना के भारत में शरण लेने के बाद, नोबेल पुरस्कार विजेता यूनुस के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार का संचालन हो रहा है।


देश की स्थिरता के लिए राजनीतिक विश्वास और त्वरित चुनाव की आवश्यकता

यदि यूनुस यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि देश एक और सैन्य शासन की ओर न बढ़े, तो उन्हें तुरंत राजनीतिक दलों के बीच विश्वास की एक नई नींव स्थापित करनी होगी। यह एक सर्वदलीय सहमति होनी चाहिए, जिसमें लोकतांत्रिक शक्तियां शामिल हों, न कि उग्र इस्लामिक धड़े। इसके अलावा, बांग्लादेश में जल्द से जल्द चुनाव कराए जाने चाहिए। सेना प्रमुख जनरल वाकर लगातार दबाव बना रहे हैं कि देश में शीघ्र चुनाव कराए जाएं, जबकि यूनुस चाहते हैं कि चुनाव 2026 में हों। यह खींचतान अब बांग्लादेश की स्थिरता के लिए एक बड़ा खतरा बन गई है। जनरल वाकर ने यूनुस से स्पष्ट रूप से कहा है कि उन्हें चुनाव की जल्द घोषणा करनी चाहिए, सेना के मामलों में हस्तक्षेप बंद करना चाहिए, और रखाइन कॉरिडोर जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर सेना को जानकारी देनी चाहिए। इसके अलावा, यूनुस को सेना प्रमुख के साथ अपने संबंध सुधारने होंगे।

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