ब्रह्मोस, आकाश... आत्मनिर्भर भारत की पहली जंग में फुस्स हुए चीनी हथियार, चर्चित अमेरिकी एक्सपर्ट ने बताया 'मेक इन इंडिया' की जीत
- Deepak Singh Sisodia
- May 29
- 5 min read
जॉन स्पेंसर ने उल्लेख किया है कि कोविड संकट के दौरान चीन के साथ गलवान घाटी में हुए संघर्ष के बाद भारत में स्वदेशी हथियार निर्माण की दिशा में एक नई लहर आई। मोदी सरकार ने 'आत्मनिर्भर भारत' को एक सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत किया। अब यह स्पष्ट हो चुका है कि स्वदेशी हथियारों के क्षेत्र में भारत एक महत्वपूर्ण शक्ति बन गया है।

इस्लामाबाद/नई दिल्ली: ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय हथियारों की चर्चा आम जनता के बीच जोर पकड़ रही है। कई लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि भारत अब तक लड़ाकू विमानों का इंजन क्यों नहीं बना सका है। इन प्रश्नों के पीछे कई कारण हैं, लेकिन सबसे प्रमुख कारण राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है। 2014 के बाद से भारतीय रक्षा उद्योग में वास्तविक परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू हुई, जब मोदी सरकार ने 'मेक इन इंडिया' की नींव पर स्वदेशी हथियारों के निर्माण का लक्ष्य निर्धारित किया। इसका उद्देश्य विदेशी हथियारों पर भारत की निर्भरता को कम करते हुए भारतीय रक्षा उद्योग को वैश्विक स्तर पर लाना था। पहलगाम आतंकी हमले के बाद जब भारत ने ऑपरेशन सिंदूर चलाया और पाकिस्तान ने आतंकवादियों का समर्थन करते हुए भारत पर हमले किए, तब 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' की वास्तविक परीक्षा प्रारंभ हुई।
'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' की विजय: भारत की रक्षा क्षमता में उछाल
अमेरिका के वॉर इंस्टीट्यूट में 'शहरी लड़ाई' पढ़ाने वाले पूर्व अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञ जॉन स्पेंसर ने भारत और पाकिस्तान के बीच हुए इस संघर्ष का विश्लेषण प्रस्तुत किया है। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी का 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' अभियान पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध के मैदान में वास्तविक विजेता के रूप में उभरा है। स्पेंसर ने लिखा है कि भारत ने इस परीक्षा को न केवल सफलतापूर्वक उत्तीर्ण किया है, बल्कि यह भी प्रदर्शित किया है कि भारत अब ऐसा देश है जो अपनी लड़ाई अपने हथियारों से, अपने आकाश में, और अपनी शर्तों पर लड़ता है। मोदी सरकार ने 2014 के बाद रक्षा क्षेत्र में एफडीआई के दरवाजे 74% तक खोल दिए, सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित किया और कई उन्नत प्रणाली जैसे ब्रह्मोस, K9 वज्र, और AK-203 जैसे तेज गति वाले हथियारों का स्वदेशी उत्पादन शुरू किया।
आत्मनिर्भर भारत: स्वदेशी हथियार निर्माण की नई लहर और अंतरराष्ट्रीय सफलता
जॉन स्पेंसर ने उल्लेख किया है कि कोविड संकट के दौरान चीन के साथ गलवान घाटी संघर्ष के बाद भारत में आत्मनिर्भर हथियार निर्माण की दिशा में एक नई लहर आई। मोदी सरकार ने 'आत्मनिर्भर भारत' को एक सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत किया। हालांकि सेना को आपातकालीन हथियारों की खरीद की अनुमति दी गई, लेकिन स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास, डिजाइन और उत्पादन में निवेश को बढ़ावा देना शुरू किया गया। वर्ष 2025 तक, भारत ने रक्षा खरीद में घरेलू सामग्री की हिस्सेदारी 30% से बढ़ाकर 65% कर दी, और दशक के अंत तक इसे 90% तक पहुंचाने का लक्ष्य है। आत्मनिर्भर भारत की क्षमता की परीक्षा 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले के बाद शुरू हुई, जिसके बाद भारत ने पाकिस्तानी आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया। भारत ने आतंकियों के खिलाफ लड़ाई में जिन हथियारों का उपयोग किया और भारतीय हथियारों ने जिस सटीकता के साथ हमले किए, उसने वैश्विक मंच पर सभी को चकित कर दिया। भारत के स्वदेशी हथियारों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी क्षमता को साबित किया। उदाहरण के लिए, भारत ने ड्रोन के माध्यम से पाकिस्तान के चीनी वायु रक्षा प्रणाली को निष्क्रिय कर दिया, जो किसी करिश्मे से कम नहीं है।
— John Spencer (@SpencerGuard)May 29, 2025
ऑपरेशन सिंदूर: भारत की स्वदेशी हथियारों की शक्ति और रणनीतिक बढ़त
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने अपने स्वदेशी हथियारों का प्रभावी ढंग से उपयोग किया। भारत की ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइलों ने दुश्मन के बंकर, रडार स्टेशन और लगभग दर्जनभर एयरबेस को नष्ट कर दिया, जबकि 'आकाश-आकाशतीर' प्रणाली ने पाकिस्तान की चीनी-निर्मित मिसाइलों और ड्रोन को हवा में ही समाप्त कर दिया। इसरो की सैटेलाइट ने भारतीय वायुसेना को पाकिस्तानी लक्ष्यों पर सटीक हमले करने की क्षमता प्रदान की, और इसके बाद भारत ने रूसी एयर डिफेंस सिस्टम एस-400 का उपयोग करके पाकिस्तान के AWACS विमान को हवा में मार गिराया, जिससे उसकी निगरानी क्षमता पर गंभीर प्रभाव पड़ा। इसके बाद भारत ने भोलारी एयरबेस पर स्थित दूसरे AWACS विमान को भी मार गिराया, जिससे पाकिस्तान वायुसेना की 70 प्रतिशत निगरानी क्षमता समाप्त हो गई।
पाकिस्तान के कौन कौन चीनी हथियार हुए फेल
JF-17 Thunder (Block II/III)- JF-17 लड़ाकू विमान का निर्माण पाकिस्तान में हुआ है, हालांकि इसे पूरी तरह से चीन ने विकसित किया है। इस विमान में चीनी एवियोनिक्स, रडार, इंजन (आरडी-93) और हथियार प्रणाली शामिल हैं। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, भारतीय वायुसेना की मिसाइलों और वायु रक्षा प्रणाली के सामने ये विमान प्रभावी नहीं रहे। इनकी सीमित पेलोड क्षमता, पुरानी रडार तकनीक और कम उत्तरजीविता ने इन्हें भारतीय वायुसेना के मुकाबले कमजोर साबित किया। इसके परिणामस्वरूप, 7 मई की रात के बाद पाकिस्तान वायुसेना ने अपने लड़ाकू विमानों को तैनात नहीं किया। भारत द्वारा भोलारी बेस पर मिसाइल हमले में दो JF-17 फाइटर जेट नष्ट हो गए। इसके अलावा, अमेरिका के दो F-16 फाइटर जेट के भी नष्ट होने की रिपोर्ट है।
HQ-9 / HQ-16 SAM सिस्टम- चीन ने रूस के S-300 और Buk सिस्टम को कॉपी कर HQ-9 और HQ-16 एयर डिफेंस सिस्टम विकसित किया है। इन्हें भारतीय हवाई और मिसाइल हमलों को रोकने के लिए तैनात किया गया था, लेकिन ये भारत के जैमिंग और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध तकनीकों के सामने असफल रहे। भारत ने लाहौर रडार सिस्टम को अपने ड्रोन के माध्यम से नष्ट कर दिया। भारतीय मिसाइलों को रोकने में ये चीनी एयर डिफेंस प्रभावी नहीं रहे।
LY-80 और FM-90 एयर डिफेंस: ये पुराने शॉर्ट और मीडियम-रेंज सरफेस टू एयर मिसाइल सिस्टम हैं, जो चीन में निर्मित हैं। ये सिस्टम भारत के कम ऊंचाई पर उड़ने वाले ड्रोन और सटीक हथियारों का पता लगाने या उन्हें रोकने में विफल रहे। इसके कारण पाकिस्तान की भारतीय मिसाइलों के खिलाफ प्रतिक्रिया देने की क्षमता समाप्त हो गई।
CH-4 ड्रोन: पाकिस्तान ने चीन से बड़ी संख्या में CH-4 ड्रोन खरीदे हैं, जिन्हें भारत के खिलाफ तुर्की के ड्रोन के साथ मिलाकर प्रयोग किया गया। हालांकि, इनमें से कोई भी ड्रोन भारत के खिलाफ सफल नहीं हो पाया। अधिकांश ड्रोन या तो जाम कर दिए गए या मार गिराए गए। चीन के ड्रोन, भारत के D4S सिस्टम के प्रभावी क्षेत्र और इलेक्ट्रॉनिक वातावरण में नष्ट हो गए।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत की आत्मनिर्भरता की तीसरी लहर
ऑपरेशन सिंदूर के बाद, यह स्पष्ट हो गया है कि भारत अब आत्मनिर्भर हथियारों के क्षेत्र में एक संप्रभु राष्ट्र बन चुका है, जो अपने विकसित किए गए हथियारों से लड़ाई करता है और विजय प्राप्त करता है। पाकिस्तान की पराजय केवल एक सैन्य हार नहीं थी, बल्कि यह उस रणनीतिक भ्रम की हार थी, जिसमें वह चीनी हार्डवेयर के आधार पर अपनी शक्ति का भ्रम पाल रहा था। हालांकि, भारत को अभी भी लड़ाकू विमानों के निर्माण पर ध्यान देने की आवश्यकता है। ऐसा प्रतीत होता है कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की तीसरी लहर शुरू हो गई है, और अगले 10 वर्षों में भारत के स्वदेशी हथियारों के समक्ष बड़ी शक्तियों का टिक पाना कठिन हो जाएगा।




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