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पाकिस्तानी नौसेना का 'ऑपरेशन द्वारका' क्या था? शहबाज ने भारत को दी 'ऑपरेशन सोमनाथ' दोहराने की गीदड़भभकी, नेवी की ठोकी पीठ

रक्षा क्षेत्र में आमतौर पर रणनीतियों या शत्रुओं की गलतफहमियों पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया जाता। शत्रुओं की गलतफहमी को बनाए रखा जाता है, ताकि उन्हें कभी न भरने वाला घाव दिया जा सके। 'ऑपरेशन द्वारका' के बाद भारत ने पाकिस्तान को ऐसा ही घाव दिया था।

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इस्लामाबाद: पाकिस्तान अक्सर भारत के साथ संघर्ष में असफल होता है, लेकिन इसके बावजूद वह बार-बार अपनी स्थिति को सुधारने का प्रयास करता है। 1948 से लेकर ऑपरेशन सिंदूर तक की घटनाओं में भारत से पराजित होने के बाद भी पाकिस्तान भारत को धमकाने से नहीं चूकता। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने हाल ही में कहा है कि "पाकिस्तान की नौसेना ऑपरेशन द्वारका जैसा अभियान चलाने के लिए पूरी तरह तैयार थी। हालांकि, पाकिस्तान की जमीनी और वायु सेना की प्रतिक्रिया के बाद भारतीय नौसेना ने संघर्ष को टाल दिया।" यह बयान उस देश के प्रधानमंत्री का है, जिसके 12 से अधिक एयरबेस पर भारत ने सीधे हमले किए थे। ऐसे में, शहबाज शरीफ को कुछ समय के लिए सार्वजनिक रूप से सामने नहीं आना चाहिए था, लेकिन वे फिर भी धमकियां देने में लगे हैं।


ऑपरेशन द्वारका और सोमनाथ: इतिहास की अनदेखी सच्चाई

पाकिस्तान के अखबार द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, शहबाज शरीफ ने कहा है कि "जमीन और हवा में हार के बाद भारत की नौसेना पाकिस्तान का सामना करने की हिम्मत नहीं कर सकी।" हालांकि, इतिहास और वास्तविकता को नजरअंदाज करना पाकिस्तान की पुरानी आदत रही है, और ऑपरेशन द्वारका इसका एक क्लासिक उदाहरण है। जब शहबाज शरीफ ने ऑपरेशन द्वारका और ऑपरेशन सोमनाथ का उल्लेख किया है, तो यह जानना आवश्यक हो जाता है कि ये ऑपरेशन वास्तव में क्या थे।


1965 के युद्ध में 'ऑपरेशन द्वारका' का उद्देश्य और प्रभाव

शहबाज शरीफ जिस 'ऑपरेशन द्वारका' का उल्लेख कर रहे हैं, वह वास्तव में 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान पाकिस्तान की नौसेना द्वारा संचालित किया गया था। पाकिस्तान ने 'ऑपरेशन द्वारका' को 'ऑपरेशन सोमनाथ' का कोड नाम दिया था। इसका उद्देश्य भारत के हिंदू समाज की भावनाओं को आहत करना था, क्योंकि मोहम्मद गजनी ने ऐतिहासिक रूप से सोमनाथ मंदिर पर कई बार आक्रमण किया था। इसी कारण पाकिस्तान ने इसे मोहम्मद गजनी से जोड़ा। 1965 के युद्ध के दौरान, पाकिस्तान की नौसेना ने 7-8 सितंबर की रात को गुजरात के द्वारका शहर पर बमबारी का आदेश दिया। पाकिस्तान का मानना था कि द्वारका में भारत का नौसैनिक अड्डा और रडार स्टेशन स्थित है। पाकिस्तान का उद्देश्य इसे नष्ट कर अपने कराची बंदरगाह की सुरक्षा सुनिश्चित करना था। इस दौरान, पाकिस्तान की नौसेना ने द्वारका के समुद्री और नागरिक क्षेत्रों में काफी देर तक बमबारी की, जो लगभग 22 मिनट तक चली और इस दौरान 60 से अधिक बम गिराए गए।


रणनीतिक भ्रम और 1971 युद्ध में पाकिस्तान की हार

बाद में यह स्पष्ट हुआ कि उस समय द्वारका शहर में न तो कोई नौसैनिक अड्डा था और न ही कोई रडार स्टेशन। भारत ने उस समय पाकिस्तान की नौसेना को बमबारी करने की छूट दी, ताकि पाकिस्तान को लगे कि उसने नौसैनिक अड्डे को नष्ट कर दिया है। पाकिस्तान की बमबारी से भारत को कोई नुकसान नहीं हुआ था, और भारत के रेलवे स्टेशन से लेकर मंदिर तक पूरी तरह सुरक्षित रहे। हालांकि, पाकिस्तान आज भी मानता है कि उसने द्वारका में भारत के नौसैनिक अड्डे और रडार स्टेशन को नष्ट कर दिया। इसी गलतफहमी का खामियाजा पाकिस्तान को 1971 के युद्ध में भुगतना पड़ा। इसलिए रक्षा क्षेत्र में अक्सर रणनीतियों या दुश्मनों की गलतफहमियों पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया जाता।


1971 के युद्ध में भारतीय नौसेना की कराची पर निर्णायक विजय

भारत ने 1965 के युद्ध में पाकिस्तान की नौसेना के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की थी और मुख्य ध्यान थल सेना और वायु सेना पर केंद्रित रखा था, जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान को हार का सामना करना पड़ा। हालांकि, पाकिस्तान की गलतफहमी बनी रही। 1971 के युद्ध के दौरान, जब पाकिस्तान को लगा कि भारतीय नौसेना कमजोर है और जवाबी कार्रवाई करने में सक्षम नहीं है, तब भारत ने कराची बंदरगाह को पूरी तरह से नष्ट कर दिया। भारतीय हमले के कारण कराची नेवल बेस कई दिनों तक जलता रहा। भारत ने 1971 की लड़ाई के दौरान कराची पोर्ट पर तेल डिपो, नौसैनिक जहाज और रडार सिस्टम को नष्ट कर दिया, जिससे पाकिस्तान के कराची पोर्ट से होने वाले समुद्री व्यापार और नौसैनिक संरचनाएं पूरी तरह से बर्बाद हो गईं।


1971 के युद्ध में भारत की विजय और पाकिस्तान का प्रचार तंत्र

भारत ने 1971 के युद्ध के दौरान आईएनएस विक्रांत एयरक्राफ्ट कैरियर का उपयोग किया, और कराची पोर्ट के नष्ट होने के बाद पाकिस्तान कमजोर पड़ गया, जिससे बांग्लादेश की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त हुआ। हालांकि, पाकिस्तान का प्रचार तंत्र फिर से सक्रिय है और वह अपनी जनता के बीच खुद को विजेता के रूप में प्रस्तुत कर रहा है। पाकिस्तान आज तक अपनी जनता को यह बताता आ रहा है कि उसने 1965 और 1971 के युद्धों में भारत को पराजित किया था। अर्थात्, जिस पाकिस्तान ने 93,000 सैनिकों के आत्मसमर्पण और आधे देश के विभाजन के बाद भी अपनी हार स्वीकार नहीं की, वह 12 एयरबेस पर हमलों के बाद हार कैसे मान सकता है?

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