गर्मी में भी हरियाली! 3 हजार की लागत से करें इस सब्जी की खेती, 30 से 40 दिनों में सोने जैसा होगा पैदावार
- Deepak Singh Sisodia
- May 14
- 2 min read
फ़रीदाबाद समाचार: फरीदाबाद के डीग गांव में किसान घीया की खेती के लिए कड़ी धूप में भी समर्पित हैं। उन्होंने बिना पट्टे की अपनी ज़मीन पर कठिन परिश्रम से खेत तैयार किया है। आशा है कि उनकी मेहनत रंग लाएगी और फसल को मंडी में उचित मूल्य प्राप्त होगा।

फरीदाबाद: फरीदाबाद के डीग गांव के खेत इन दिनों हरे-भरे दिखाई दे रहे हैं। यहां के किसान तपती धूप और झुलसती गर्मी के बीच लौकी की खेती में व्यस्त हैं। पसीने से तरबतर शर्ट, माथे पर पसीने की लकीरें और हाथों में फावड़ा लिए ये किसान इस उम्मीद में दिन-रात मेहनत कर रहे हैं कि इस बार की फसल उन्हें कुछ राहत प्रदान करेगी।
महेंद्र सिंह की घीया की खेती में नई शुरुआत
डीग गांव के निवासी महेंद्र सिंह उन मेहनतकश किसानों में से एक हैं। 52 वर्षीय महेंद्र सिंह ने इस बार पहली बार ढाई बीघा जमीन पर घीया की खेती प्रारंभ की है। उन्होंने Local18 को बताया कि शुरुआत में दो बार खेत की जुताई की, इसके बाद सिंचाई, नलाई और गुड़ाई करके खेत को तैयार किया। गर्मियों में खेत की देखभाल करना सरल नहीं होता, लेकिन बिना मेहनत के फसल प्राप्त नहीं होती।
घीया की फसल की लागत और लाभ की संभावनाएं
महेंद्र सिंह बताते हैं कि घीया की फसल लगभग ढाई महीने में तैयार हो जाती है। वर्तमान में यह मंडी में 10 से 12 रुपये प्रति किलो बिक रही है। ढाई बीघे की खेती पर लगभग ढाई से तीन हजार रुपये की लागत आई थी। जितनी लागत लगी थी, उतनी तो निकल ही रही है। यदि मूल्य 10 रुपये से नीचे गया, तो घाटा हो जाएगा। हालांकि, उन्होंने कहा कि यदि मौसम अनुकूल रहा, तो फसल तीन महीने तक चल सकती है।
महेंद्र की स्वामित्व वाली भूमि और खेती का संघर्ष
महेंद्र की यह भूमि उनकी स्वयं की है; उन्होंने इसे पट्टे पर नहीं लिया है। वे प्रतिदिन बिना किसी चिंता के खेत में मेहनत कर रहे हैं। उनका कहना है कि यही खेती हमारा मुख्य सहारा है। जब फसलों में कीड़े लगते हैं, तो हम स्प्रे करते हैं। बस यही प्रार्थना है कि मौसम साफ रहे, बारिश समय पर हो, और मंडी में दाम अच्छे मिलें, वे मुस्कराते हुए कहते हैं।
मेहनत और उम्मीदों की फसल: डीग गांव के किसानों की कहानी
डीग गांव के कई किसान, महेंद्र सिंह की तरह, अपनी मेहनत में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। चाहे धूप कितनी भी तेज क्यों न हो, वे घीया की बेलों की देखभाल, पौधों को पानी देने और कीड़ों से बचाने का काम समय पर कर रहे हैं। उन्हें यह भली-भांति पता है कि आज की गई मेहनत कल बाजार में फसल के रूप में उनके चेहरे पर मुस्कान लाएगी।
इस गांव की मिट्टी में केवल सब्जियां ही नहीं, बल्कि उम्मीदें भी पनपती हैं, और किसान इन उम्मीदों को अपने हाथों से सींच रहे हैं।




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